Saturday 10 December 2016


केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा समूह 'क' अधिकारी एसोसिएशन

सचिव, राजभाषा विभाग के साथ बैठक

दिनांक : 09.12.2016; समय : 1:20 बजे अपराह्न से 2:10 बजे अपराह्न ।

नेतृत्‍व : श्री वेद प्रकाश गौड (अध्‍यक्ष), निदेशक-संस्‍कृति मंत्रालय तथा श्री राकेश कुमार, संयुक्‍त निदेशक-गृह मंत्रालय ।
उपस्थित अन्‍य अधिकारी : सर्वश्री आनंद कुमार (उपाध्‍यक्ष), उप निदेशक-राजस्‍व विभाग; इफ्तेखार अहमद (उपाध्‍यक्ष), सहायक निदेशक-नीति आयोग; बृजभान (महासचिव), उप निदेशक-पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय; अरूण विद्यार्थी (संयुक्‍त सचिव), सहायक निदेशक-डीएवीपी और सुधीर कुमार (वरिष्ठ सदस्‍य), सहायक निदेशक- एमएसएमई ।
बैठक का विवरण
क्र.सं
मुद्दा
एसोसिएशन द्वारा प्रस्‍तुत तर्क
राजभाषा विभाग का दृष्टिकोण
1
राजभाषा विभाग में निदेशक (प्रशा.) के स्‍तर तक यथा अनुमोदित भर्ती नियमों के मसौदे को DoPT के अनुदेशों के अनुसार जन-टिप्‍पणियां प्राप्‍त करने के लिए वेबसाइट पर अपलोड किया जाए और भर्ती नियमों के मसौदे में अनुसूची-।।। में पदोन्‍नति के लिए नियमित सेवा के स्‍थान पर अनुमोदित सेवा (Approved Service) का प्रावधान करते हुए दूसरे विकल्‍प में दो फीडर पदों की संयुक्‍त सेवा और फीडर पद पर न्‍यूनतम सेवा की अवधि को कम किया जाए।
(i) अनुमोदित सेवा के आधार पर पदोन्‍नति देने की व्‍यवस्‍था CSS के भर्ती नियम, 2009 में भी है और CSOLS भी CSS की समानांत सेवा है जिसके कार्मिक CSS के कार्मिकों की तरह केंद्री सचिवालय संगठन में ही कार्यरत हैं।
(ii) CSOLS में लगभग सभी स्‍तरों पर पदोन्‍नति के लिए पात्र अधिकारियों का पूर्णत: अभाव है। इसका कारण समय पर DPC की बैठकों का आयोजन न किए जाने के साथ-साथ अनुमोदित सेवा के स्‍थान पर नियमित सेवा के आधार पर पदोन्‍नति हेतु पात्रता का निर्धारण करना है।
(iii) वर्तमान में उप निदेशक पद पर 86 में से लगभग 60 पद रिक्त होने के बावजूद सहायक निदेशक के फीडर पद पर कार्यरत अधिकारी मार्च, 2021 में अर्थात 05 साल बाद ही पदोन्‍नति के लिए पात्र हों पाएंगे क्‍योंकि उन्‍हें 17.3.2016 से ही नियमित किया गया है। इसके विपरीत, यदि अनुमोदित सेवा का प्रावधान हो जाता है तो रिक्तियों की संख्‍या से कुछ अधिक अधिकारी तुरंत उप निदेशक के पद पर पदोन्‍नति के लिए पात्र हो जाएंगे और यदि नीचे के फीडर पदों पर संयुक्‍त सेवा और न्‍यूनतम सेवा को भी दूसरे विकल्‍प के तौर पर जोड़ते हुए इनकी अवधि कम रखी जाए तो भविष्‍य में भी पात्र अधिकारियों की उपलब्‍धता बनी रहेगी।
(iv) व्‍यावहारिकता की कसौटी पर परखे जाने पर यह अकाट्य तथ्‍य उजागर होता है कि निदेशक पद पर पदोन्‍नति के लिए विकल्‍प के तौर पर रखे जाने वाली संयुक्‍त सेवा और न्‍यूनतम सेवा की अवधि क्रमश: 06 वर्ष और 01 वर्ष तथा संयुक्‍त निदेशक/उपनिदेशक पदों पर पदोन्‍नति के लिए क्रमश: 07 वर्ष और 02 वर्ष निर्धारित किए जाने पर ही वर्तमान में और भविष्‍य में पदोन्‍नति के लिए पात्र अधिकारियों की उपलबधता सुनिश्चित हो सकेंगी, अन्‍यथा नहीं।
(v) DPC की बैठकों के आयोजन में हुए असाधारण विलंब के लिए सेवा के अधिकारी उत्‍तरदायी नहीं हैं और न ही वे इस विलंब के फलस्‍वरूप उन्‍हें मिल रहे दंड के पात्र हैं। अत: अधिकारियों की पदोन्‍नति के लिए इस समय अनुमोदित सेवा की व्‍यवस्‍था करने के साथ-साथ संयुक्‍त/न्‍यूनतम सेवा अवधि को कम करने की संजीवनी ही पात्र अधिकारी उपलब्ध न होने की बीमारी का एकमात्र इलाज है।
(vi) राजभाषा विभाग विगत में पदोन्‍नति के लिए पात्रता अवधि में एक बारगी छूट के लिए दो-तीन बार DoPT को प्रस्‍ताव भेज चुका है और DoPT इस आधार पर उक्‍त छूट देने से मना कर चुका है कि ''CSOLS के RR में अनुमोदित सेवा के आधार पर पदोन्‍नति देने का प्रावधान नहीं है और इसलिए राजभाषा विभाग को पहले CSOLS के RR में संशोधन करना चाहिए।'' अत: अब, जब नए भर्ती नियमों के मसौदे को निदेशक (प्रशासन) के स्‍तर तक अंतिम रूप दिया जा चुका है तो अनुमोदित सेवा का प्रावधान न करने और मामले को आगे न बढ़ाने का कोई औचित्‍य नहीं है।
सहम‍त
विभाग शीघ्र अगली कार्रवाई करेगा।
2         
नए भर्ती नियम अधिसूचित होने तक वर्तमान में रिक्‍त सभी स्तरों के पदों को एक बारगी उपाय के तौर पर अनुमोदित सेवा के आधार पर तदर्थ पदोन्‍नति से भरा जाए।
दिनांक 31.12.2016 की स्थिति के अनुसार निदेशक स्‍तर पर लगभग 13, संयुक्‍त निदेशक स्‍तर पर 27 और उप निदेशक स्‍तर पर 60 पद रिक्‍त हो जाएंगे तथा सहायक निदेशक स्तर पर भी रिक्त पदों की संख्या 100 को पार कर जाएगी । चूंकि इन रिक्तियों को भरने में असाधारण विलंब हो चुका है, अत: इन्हें नए भर्ती नियम बनने तक एक बारगी उपाय के रूप में अनुमोदित सेवा के आधार पर तदर्थ पदोन्‍नति देकर भरने के अतिरिक्‍त अन्‍य कोई विकल्‍प नहीं बचा है।
अंशत: सहमत
सिद्धांत रूप में विभाग तदर्थ पदोन्‍नति की परंपरा को जारी रखने के पक्ष में नहीं है परंतु इस मामले में पूर्णत: दरवाजे बंद नहीं किए गए हैं। पुनर्विचार संभव 
है । 

3         
वर्ष 2011 में संवर्ग पुनर्संरचना संबंधी दिनांक 12.09.2011 के कार्यालय ज्ञापन के पैरा-4 में भर्ती नियमों में आवश्‍यक परिवर्तन करने का प्रावधान किए जाने और भर्ती नियमों के लगभग 4 वर्ष के असाधारण विलंब के साथ मई, 2015 में अधिसूचित होने के कारण वर्ष 2011-12, 2012-13, 2013-14 और 2014-15 के लिए नियमानुसार तदर्थ भर्ती नियम बनाए जाएं और पदों को 100% पदोन्नति से भरने का  प्रावधान किया जाए ।
(i) संवर्ग पुनर्संरचना संबंधी दिनांक 12.9.2011 के कार्यालय ज्ञापन के पैरा-4 में यह प्रावधान है कि ''संवर्ग में पद संख्‍या में परिवर्तन हो जाने के कारण सेवा के भर्ती नियमों में किए जाने वाले तदनुरूपी संशोधनों को अलग से अधिसूचित किया जाएगा।'' उक्‍त संशोधन, जो संवर्ग पुनर्संरचना के तत्‍काल बाद अधिसूचित किए जाने अपेक्षित थे, लंबे समय तक अधिसूचित नहीं किए जा सके और इनसे संबंधित अधिसूचना केवल मई, 2015 में ही जारी की जा सकी।
(ii) दिनांक 12.9.2011 के कार्यालय ज्ञापन के पैरा-2 में किया गया 100% पदोन्नति का प्रावधान CSS और CSSS की तर्ज पर किया गया है और इस पर तत्कालीन गृहमंत्री जी का अनुमोदन प्राप्त है ।
(iii) संवर्ग पुनर्संरचना संबंधी दिनांक 12.9.2011 के कार्यालय ज्ञापन के पैरा-4 में उक्‍त प्रावधान किए जाने के कारण वर्ष  2011 से वर्ष 2015 (अप्रैल, 2015) तक कोई सेवा नियम/भर्ती नियम कानूनी रूप से अस्तित्‍व में नहीं था और ऐसी स्थिति में यह जरूरी था कि या तो तुरंत नए भर्ती नियम बना दिए गए होते या फिर नए भर्ती नियम बनने तक तदर्थ भर्ती नियम बनाए जाने चाहिएं थे और यह कार्य नियमानुसार किसी और विभाग की राय के बिना राजभाषा विभाग द्वारा स्‍वयंमेव किया जाना चाहिए था। अत: अब वर्ष 2011-12 से 2014-15 तक के लिए तदर्थ भर्ती नियम बना कर‍ स्थिति को जटिल से सुगम बनाया जा सकता है।
(iv)  उल्‍लेखनीय है कि पुरानी रिक्तियों को नए भर्ती नियमों से भरा जाना DoPT के अनुदेशों के विपरीत होने के साथ-साथ विधि-विरूद्ध भी है। अत: वर्ष 2011 से वर्ष 2014 तक की रिक्तियों को वर्ष 2015 में बने भर्ती नियमों के आधार पर नहीं भरा जा सकता और वर्ष 2011 से 2014 तक की अवधि के लिए सभी पदों को केवल पदोन्‍नति से भरने की व्‍यवस्‍था करते हुए उक्‍त अवधि के लिए तदर्थ भर्ती नियम बनाए जाने को छोड़कर अन्‍य कोई वैधानिक विकल्‍प शेष नहीं बचा है।
(v)  संभवत: इन्‍हीं स्थितियों को भांपते हुए राजभाषा विभाग ने स्‍वयं एक न्‍यायालय-मामले में यह हलफनामा दिया है कि विभाग भर्ती नियम, 2015 में उल्लिखित प्रावधान के अनुसार सहायक निदेशक पद की वर्ष 2015-16 में ही उत्‍पन्‍न रिक्तियों को भरेगा परंतु विभाग का यह निर्णय तब तक अधूरा, अमान्‍य एवं अविश्वसनीय है जब तक वर्ष 2011 से वर्ष 2014 तक के लिए भर्ती नियमों की शून्‍यता को समाप्‍त करते हुए इस अवधि के लिए तदर्थ भर्ती नियम बनाकर पदों को 100% पदोन्नति से भरने का  प्रावधान नहीं किया जाता और वर्ष 2015-16 (अप्रैल-15 से मार्च-16) में हुई रिक्तियों की सही-सही गणना नहीं की जाती ।
असहमत
12.09.2011 का कार्यालय ज्ञापन सही प्रतीत नहीं होता । भर्ती-नियमों में उल्लिखित भर्ती पद्धति के आधार पर ही रिक्तियाँ भरी जानी चाहिएं। उनमें उल्लिखित पद्धति से भिन्न किसी अन्य पद्धति से पदों को भरना उचित प्रतीत नहीं होता। अब वर्ष  2011 से वर्ष 2015 (अप्रैल, 2015) तक की अवधि के लिए तदर्थ भर्ती नियम बनाना भी संभव नहीं है ।
4         
दिनांक 17.3.2016 को सहायक निदेशकों को नियमित करते समय मांगी गई आपत्तियों का शीघ्र निस्तारण किया जाए
आपत्तियों का शीघ्र निस्तारण न होने से  पदधारियों की उप निदेशक पद पर पदोन्नति रुकी हुई है जबकि इस स्तर पर रिक्तियों की संख्या लगभग 60 है
सहमत।
आपत्तियों का अतिशीघ्र निस्‍तारण होगा।
    
निष्कर्ष
हमारा निष्कर्ष यह है कि -यदि यह एसोसिएशन सभी स्तरों के पदों को दिनांक 12.9.2011 के कार्यालय ज्ञापन के अनुसार 100% पदोन्नति से भरने के लिए न्यायालय का दरवाजा न खटखटाती और सहायक निदेशक पद की सीधी भर्ती के विज्ञापन पर Stay न लेती तो राजभाषा विभाग अब तक सभी सहायक निदेशकों को तदर्थ ही रहने देता तथा अतिशीघ्र सीधी भर्ती करवाकर सीधी भर्ती से आए सहायक निदेशकों को वरिष्ठता क्रम में तदर्थ सहायक निदेशकों से ऊपर रखकर अपने मन की बात पूरी कर चुकी होता । अत: न्यायालय में लंबित मामले में गंभीरता बरकरार रखते हुए उसमें अतिशीघ्र अंतिम एवं अनुकूल निर्णय प्राप्त करना होगा । मामले में देरी का एक प्रमुख कारण अभी तक वकील को फीस का पर्याप्त भुगतान नहीं हो पाना भी है, अत: सभी चूककर्ता अधिकारियों से अनुरोध है कि कृपया एसोसिएशन को पूर्व निर्धारित धनराशि का शीघ्र योगदान देकर अनुगृहीत करें ।स्थिति अति गंभीर है । अब जरूरी हो गया है कि पहले कार्यकारिणी की और फिर तुरंत आम सभा की बैठक आयोजित करके भविष्य की लड़ाई की तैयारी कर ली जाए और उसकी रूपरेखा भी तय कर ली जाए ।
****